अविनाश वाचस्पति का व्यंग्य - 26 जनवरी में दिल्‍ली की झांकी








26 जनवरी 26 बार से डबल बार आ चुकी है। मनाई जा रही है। आप इधर यह पढ़ रहे हैं उधर देश में गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है। इस बार परेड में झांकियों की कमी नहीं है। कमी तो सिर्फ पिछले दो बरस से दिल्‍ली की झांकी न निकालकर कृत्रिम रूप से पैदा की गई है। कोहरा खूब घमासान मचा रहा है। अगर 26 जनवरी को कोहरे ने घमासान मचाई तो 26 जनवरी की तो 62 जनवरी हो जाएगी। किसी को कुछ नजर ही नहीं आयेगा। आप कुछ भी दिखलाओ। सब बेदेखा रह जायेगा।
       वैसे एक परेड कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के नाम पर दिनरात लगातार जारी है। कहीं मेट्रोपुल खुदकुशी करता है। कहीं एक गार्डर गिरता है। कहीं पर क्रेन ही लुढ़क पुढ़क जाती है। इतना न हुआ तो मेट्रो ही रूक जाती है या रोक दी जाती है। वैसे तो परेड की सारी झांकियों को दिल्‍ली की दीवानगियों से भरपूर करके आम पब्लिक को आनंद दिया जा सकता था। पर वे न सही, हम दे रहे हैं आप लूटिए इस आनंद को इसमें कोहरा भी बाधक नहीं बनेगा। इस बात की भरपूर गारंटी है।
आटो टैक्‍सी वालों की जीवंत झांकी यानी मीटर से न चलने का उनका रूतबा पहले की तरह ही कायम है। जगह जगह सुरक्षा कड़ी है कि परिंदा भी पर न मार सके। अब आतंकवादी न तो परिंदे हैं और न वे पर मारते हैं। वे बम फोड़ते हैं। सीधा नाता यमराज से जोड़ते हैं। यमराज से हमारे पड़ोसी का कोलेब्रेशन है। पड़ोसी अपने पड़ोस का बेड़ा गर्क करने पर जुटा हुआ है, कितना रहमदिल पड़ोसी है, स्‍वार्थी नहीं है।
       ट्रैफिक उल्लंघन करने वालों की जेबों की सुरक्षा का कोई उपाय नहीं, वे विवश होकर यातायातकर्मियों से जेब कटवा रहे हैं। लाल बत्‍ती धड़ल्‍ले से पार हो रहीहै। सुविधाशुल्‍क के अग्रिम भुगतान का कमाल है। झांकी बंद करेंगे तो जनता झांकना बंद करेगी, इस मुगालते में सरकार है। यह कोई नहीं सूंघ पा रहा है।
       खुले में लघुशंका रुपी झांकी को देखते रहिए, अगर यह जानने की कोशिश की जाए कि - तलाशो, जिसने कभी सड़क किनारे, स्‍कूल की दीवार पर, कभी हल्‍की सी ओट और बिना ओट ही इस तलबसे छुटकारा न पाया हो, तो ऐसा कोई नहीं मिलेगा। परेड छूटने के बाद यहदृश्‍य खुलेआम दिखेगा।
       थूकना तो इस देश में जुर्म है ही नहीं। यह जर्म नेताओं तक में महामारी की तरह व्‍याप्‍त हैं। सब एक दूसरे तीसरे पर सरेआम थूक रहे हैं। आप और हम उनके थूकने की क्रिया को पहचान नहीं पा रहे हैं। खुले में धूम्रपान पर रोक का कानून बनाकर लागू है। कारों तक में धूम्रपान मना है। कारसवार और कार चालक खूब धुंआ उड़ा रहे हैं सिर्फ साइलेंसर से ही नहीं, सिगरेट बीड़ी का सेवन करके भी। बस वालों पर रोक लगाने से तो सरकार बेबस ही है क्‍योंकि सरकार कार में चलती है।
       फुटपाथों पर पैदल चलने वालों की जगह विक्रेता कब्‍जा जमाए बैठे हैं और पैदलों को ही अपना सामान बेच रहे हैं। राजधानी में झांकियों की कमी नहीं है।सूचना के अधिकार के तहत मात्र दस रुपये खर्च करके आप लिखित में संपूर्णदेश में झांकने की सुविधा का भरपूर लुत्‍फ उठा तो रहे हैं। देश को आमदनीभी हो रही है, जनता झांक भी रही है। सब कुछ आंक भी रही है। देश में झांकने के लिए छेद मौजूद हैं इसलिए झांकियों की जरूरत नहीं है।
अभी तो यह गाथा सिर्फ दिल्‍ली की है। दिल्‍ली जो राजधानी है। अगर सबका हाले बयां किया गया तो न जाने क्‍या होगा
*******

अविनाश वाचस्‍पति
साहित्‍यकार सदन
पहली मंजिल, 195 सन्‍त नगर
नई दिल्‍ली 110065

Posted in , . Bookmark the permalink. RSS feed for this post.

Leave a Reply

आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए कोटिशः धन्यवाद और आभार !
कृपया गौर फरमाइयेगा- स्पैम, (वायरस, ट्रोज़न और रद्दी साइटों इत्यादि की कड़ियों युक्त) टिप्पणियों की समस्या के कारण टिप्पणियों का मॉडरेशन ना चाहते हुवे भी लागू है, अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ पर प्रकट व प्रदर्शित होने में कुछ समय लग सकता है. कृपया अपना सहयोग बनाए रखें. धन्यवाद !
विशेष-: असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

About this blog

आखर कलश पर हिन्दी की समस्त विधाओं में रचित मौलिक तथा स्तरीय रचनाओं को स्वागत है। रचनाकार अपनी रचनाएं हिन्दी के किसी भी फोंट जैसे श्रीलिपि, कृतिदेव, देवलिस, शुषा, चाणक्य आदि में माईक्रोसोफट वर्ड अथवा पेजमेकर में टाईप कर editoraakharkalash@gmail.com पर भेज सकते है। रचनाएं अगर अप्रकाशित, मौलिक और स्तरीय होगी, तो प्राथमिकता दी जाएगी। अगर किसी अप्रत्याशित कारणवश रचनाएं एक सप्ताह तक प्रकाशित ना हो पाए अथवा किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त ना हो पाए तो कृपया पुनः स्मरण दिलवाने का कष्ट करें।

महत्वपूर्णः आखर कलश का प्रकाशन पूणरूप से अवैतनिक किया जाता है। आखर कलश का उद्धेश्य हिन्दी साहित्य की सेवार्थ वरिष्ठ रचनाकारों और उभरते रचनाकारों को एक ही मंच पर उपस्थित कर हिन्दी को और अधिक सशक्त बनाना है। और आखर कलश के इस पुनीत प्रयास में समस्त हिन्दी प्रेमियों, साहित्यकारों का मार्गदर्शन और सहयोग अपेक्षित है।

आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचनाकार की रचना व अन्य सामग्री की कॉपी करना अथवा अपने नाम से कहीं और प्रकाशित करना अवैधानिक है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसकी जिम्मेदारी स्वयं की होगी जिसने सामग्री कॉपी की होगी। अगर आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचना को प्रयोग में लाना हो तो उक्त रचनाकार की सहमति आवश्यक है जिसकी रचना आखर कलश पर प्रकाशित की गई है इस संन्दर्भ में एडिटर आखर कलश से संपर्क किया जा सकता है।

अन्य किसी भी प्रकार की जानकारी एवं सुझाव हेत editoraakharkalash@gmail.com पर सम्‍पर्क करें।

Search

Swedish Greys - a WordPress theme from Nordic Themepark. Converted by LiteThemes.com.