बूढा बरगद

- नन्दलाल भारती
गांव से थोडी ही दूर खडा बूढे बरगद का पेड
जहां चला करती थी कभी रहटें
बरस बहुत बीत गये बस यादें है बाकी
बूढा बरगद खडा अभी दीन हीन
आकार तो बढा, पर हो गया बहुत दीन
चलती थी रहटें पेड भी था भारी
निर्मल छाया हुई बात पुरानी

रहा क्या होगा रहट का पानी
बैल की चाल झरता था पानी
ना रही रहटें अब, वक्त बदल गया
अधपटा कुआं मूक कहानी कह रहा
’भारती’ लोग अब भी थक हार कर बूढे बरगद की छांव जाते
खडा दीन सा बूढा बरगद, लोग कहानी सुनाते

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