सीताराम गुप्ता का आलेख - सकारात्मक मानसिक दृष्टिकोण द्वारा ही संभव है संपूर्ण उपचार



 

 

 

 

 

 

व्यक्ति का मानस या मन (Psyche) एक उद्यान की तरह होता है जिसे चाहे तो आप अपनी सूझ-बूझ से सजाएँ-सँवारें या उसे जंगली बन जाने दें। चाहे आप उद्यान को उर्वर बनाएँ अथवा उसे जंगली बन जाने दें मगर उसमें कुछ न कुछ तो उगेगा ही। यदि आप उद्यान में अच्छी प्रजाति के उपयोगी बीज अथवा पौधों का रोपण नहीं करेंगे तो बहुत से अनुपयोगी पौधे एवं खर-पतवार स्वयमेव उग आएँगे और उनकी वृद्धि भी होती ही रहेगी।

      ’’मन में स्वस्थ सकारात्मक विचारों का जो बीजारोपण सप्रयास किया जाता है अथवा अनचाहे नकारात्मक या ध्वंसात्मक  विचारों का बीजारोपण हो जाने से रोका नहीं जाता है तो वे विचार रूपी बीज उसी प्रकार के पौधे उगाएँगे और उसी प्रकार के फूल-फल भी आएँगे और देर-सबेर आप तदनुरूप कुछ न कुछ क्रिया करेंगे। अच्छे विचार बीजों के अच्छे सकारात्मक व स्वास्थ्यप्रद तथा बुरे विचार बीजों के बुरे, नकारात्मक व घातक फल आपको वहन करने ही  पडेंगे।‘‘ ये विचार व्यक्त किये हैं जेम्स एलेन ने अपनी पुस्तक As A Man Think में।

 जोस सिल्वा अपनी पुस्तक “You the Healer” में कहते हैं कि मन मस्तिष्क को चलाता है और मस्तिष्क शरीर को।

 The mind runs the brain and the brain runs the body. And so the body complied. The brain is an organ of healing. It runs the body.

     उपचार की सारी प्रक्रिया में हमारे मन का अवचेतन भाग (Subconscious mind) सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब हमारे अवचेतन मन में कोई विचार, कोई खयाल आता है या डाल दिया जाता है तो हमारा अवचेतन मन उसे बिना किसी तर्क-वितर्क के स्वीकार कर लेता है और सीधे मस्तिष्क को आदेश दे डालता है। मस्तिष्क की कोशिकाएँ जिन्हें न्यूरोंस कहा जाता है, फौरन इस दिशा में सक्रिय हो जाती हैं और हमारे विचार को कार्यरूप में परिणत कर डालती हैं। वैसे भी हमारा स्वास्थ्य हमारे मस्तिष्क की कोशिकाओं की उच्च प्राथमिकता होता है। जैसे ही हम मन द्वारा मस्तिष्क की इस कोशिकाओं की उत्तम स्वास्थ्य अथवा रोग-मुक्ति के लिए प्रोग्रामिंग करते हैं ये अतिशीघ्रता से सक्रिय होकर अपने कार्य को सम्पन्न करती है अर्थात् हमें आरोग्य प्रदान करती है, हमारा उपचार करती है।

मायर्स कहते हैं कि अवचेतन मन केवल कूडे-कचरे का ढेर नहीं है अपितु ये सोने की खान भी है।

     ’’रोग के कारण चित्त और आत्मा के अन्तराल में ही निवास करते प्रतीत होते हैं। अपने जीवन की स्थितियों में परिवर्तन लाने के लिए जीवन दृष्टि में बदलाव लाने की आवश्यकता है क्योंकि जैसा आप साचेंगे, वैसे ही आप बनते चले जाएँगे। अध्यात्म विज्ञान के अनुरूप यदि वास्तव में सभी कुछ चित्त से ही दिशा निर्देशित होता है तो हम अपने चित्त में जो दृष्टिपथ अंकित करेंगे, वही तो भौतिक स्तर पर प्रकट होगा। यदि हम अपने चित्त में प्रेम और आभार के विचार जगाएँगे तो तदनुसार जीवन भी प्रेम और समृद्धि से भरपूर रहेगा।‘‘

–Paula Horan (Empowerment Through Reiki)

     मानव मन एक कम्प्यूटर की तरह काम करता है। इसमें जो डालोगे वही बाहर निकलेगा। अच्छे विचार मस्तिष्क को स्वास्थ्यप्रद हार्मोंस उत्सर्जित करने के लिए प्रेरित करते हैं तथा बुरे विचार मस्तिष्क को व्याधिजनक हार्मोंस उत्सर्जित करने के लिए प्रेरित करते हैं। विचार हम पर शासन करते हैं लेकिन हम विचारों पर शासन कर सकते हैं। विचारों पर शासन करने का तरीका है विचारों का चुनाव करना। विचार समाप्त नहीं किये जा सकते लेकिन अच्छे विचारों का चुनाव संभव है। बुरे विचारों से छुटकारा संभव है लेकिन तभी तब, जब अच्छे विचार, स्वस्थ सकारात्मक विचार भी हों।

      अतः स्वस्थ-सकारात्मक विचारों से मन को आप्लावित रखें। बुरे विचारों के लिए मन में स्थान ही नहीं बचेगा और वे प्रभावित ही नहीं कर सकेंगे। स्वस्थ-सकारात्मक विचारों को प्रभावित करने दीजिए और उनका प्रभाव देखिए। आज ही किसी एक सकारात्मक विचार को हावी होने दीजिए उस विचार का कल्पना चित्र बनाइए और उसमें खो जाइए। बार-बार लगातार इसे दोहराते रहिए, लाभ होगा। एक तरीका आपके हाथ आ जाएगा।

      अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के भाषाविद् जॉन ग्रिंडर तथा कम्प्यूटर विशेषज्ञ रिचर्ड बैंडलर द्वारा विकसित न्यूरो लिंग्विस्टिक प्रोग्रामिंग (NLP) कहती है कि विश्वास के ऊपर ही निर्भर है सुख-दुख, सफलता-असफलता, शांति-क्रोध तथा क्रिया एवं कर्म का स्तर। विश्वास उपजता है मन में। मन की शक्ति द्वारा ही हम शिक्षा, खेल-कूद, संगीत-नृत्य, उद्योग-व्यवसाय, व्यक्तित्व विकास तथा चिकित्सा एवं उपचार के क्षेत्र में असाधारण सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसी के द्वारा कैंसर तक के रोगी को ठीक किया जा सकता है अथवा शरीर के टूटे हुए अंग का उपचार किया जा सकता है।

      सकारात्मक सोच, सकारात्मक इच्छा, सकारात्मक विश्वास तथा सकारात्मक आकांक्षा ये सभी तत्त्व हमारे अच्छे स्वास्थ्य के निर्माण के महत्वपूर्ण घटक हैं। जो व्यक्ति जीवन में इन तत्त्वों पर आधारित सकारात्मक मानसिक दृष्टिकोण (Positive Mental Attitude) अपनाता है वह शायद ही बीमार होता हो। स्वस्थ होने का अनुभव मात्र स्वास्थ्य उत्पन्न करता है तथा समृद्धि का अनुभव समृद्धि। मेरे प्रिय मित्र इस समय आप अपने मन में क्या अनुभव कर रहे हैं? इस समय आप अपने मन में जो अनुभव कर रहे हैं आप वही तो ह। विश्वास नहीं आता तो मन में व्याप्त अनुभव अथवा विचार को बदलकर देख लीजिए। हर अनुभव के साथ आप बदल जाते हैं। आफ अनुभव अथवा विचार ही आपको अच्छा या बुरा बनाते हैं।

 The feeling of health produces health. The feeling of wealth produces wealth. My dear friend! What do you feel? Healthy or wealthy or both?

     अभाव और सम्पन्नता दोनों अनुभव हैं। अभाव का अनुभव खराब तथा सम्पन्नता का अनुभव अच्छा ही हो यह जरूरी नहीं। हर अनुभव में आनंद प्राप्त करने का प्रयास होना चाहिए। अनुभव अच्छा या बुरा नहीं होता ये तो हमारी सोच का परिणाम मात्र है। सोच बदलने से परिणाम बदल जाता है जिसे आप हार या असफलता समझते हैं वो जीत या सफलता में बदल जाती है। विषम परिस्थितियों में जीवन-यापन, यात्रा अथवा खानपान का अनुभव आप चाहें तो कष्टप्रद हो सकता है और आफ चाहने पर ही रोमांचक तथा प्रेरणास्पद हो सकता है।

      विशेषज्ञ कहते हैं कि जो सुखी हैं, संतुष्ट हैं अथवा ऐसा अभिनय करते हैं उनकी उम्र भी अधिक होती है। जीवन एक नाटक ही तो है। वास्तविक जीवन में न जाने कितना अभिनय करना पडता है। कभी हम अमीर बनने का अभिनय करते हैं तो कभी गरीब बनने का, कभी स्वस्थ दिखने का तो कभी रुग्ण होने का। छुट्टी लेने के लिए लोग प्रायः अपनी या परिवार के अन्य सदस्यों की बीमारी का बहाना बनाते हैं और एक ऐसी कहानी गढते हैं कि छुट्टी देने वाला विवश हो जाता है लेकिन जो कहानी गढी गई, जो कल्पना की गई, जो भाव चेहरे पर उत्पन्न किये गए, वे भाव सबसे पहले मन में उत्पन्न हुए। जो कल्पना की गई वो भी मन में उत्पन्न हुई। और जो विचार मन में उठे वो वास्वविक जीवन में घटित भी अवश्य होंगे। अतः तभी कहा गया है कि कभी भी झूठ मत बोलो।

      जीवन में अभिनय करो लेकिन सकारात्मक अभिनय। बाहर के लोगों को प्रभावित करने के लिए नहीं अपितु मन को प्रभावित करने क लिए। अपने मन को समझाइए  कि मैं सुखी और संतुष्ट हूँ। अपने मन को प्रभावित कीजिए कि मैं पूर्णरूपेण स्वस्थ हूँ, मेरे हृदय में सबके लिए प्रेम है। यह अभिनय श्रेष्ठ अभिनय है। यदि कोई रोग आ घेरता है तो भी घबराइए मत। रोग का आना स्वाभाविक है तो जाना भी निश्चित है। उपचार करते रहिए लेकिन साथ ही मन को दुर्बल मत होने दीजिए। कहिए कि मेरे अंदर रोग से लडने की पूर्ण क्षमता है। मैं रोग को भगा कर ही दम लूँगा। विश्वास के साथ किया गया आपका संकल्प आपको हर क्षेत्र में सफलता की ओर अग्रसर करेगा इसमें संदेह नहीं।

सीताराम गुप्ता

ए.डी.-१०६-सी, पीतमपुरा,

दिल्ली-११००३४

फोन नं. ०११-२७३१३९५४/२७३१३६७९

Email: srgupta54@yahoo.co.in

 

Posted in . Bookmark the permalink. RSS feed for this post.

Leave a Reply

आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए कोटिशः धन्यवाद और आभार !
कृपया गौर फरमाइयेगा- स्पैम, (वायरस, ट्रोज़न और रद्दी साइटों इत्यादि की कड़ियों युक्त) टिप्पणियों की समस्या के कारण टिप्पणियों का मॉडरेशन ना चाहते हुवे भी लागू है, अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ पर प्रकट व प्रदर्शित होने में कुछ समय लग सकता है. कृपया अपना सहयोग बनाए रखें. धन्यवाद !
विशेष-: असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...

About this blog

आखर कलश पर हिन्दी की समस्त विधाओं में रचित मौलिक तथा स्तरीय रचनाओं को स्वागत है। रचनाकार अपनी रचनाएं हिन्दी के किसी भी फोंट जैसे श्रीलिपि, कृतिदेव, देवलिस, शुषा, चाणक्य आदि में माईक्रोसोफट वर्ड अथवा पेजमेकर में टाईप कर editoraakharkalash@gmail.com पर भेज सकते है। रचनाएं अगर अप्रकाशित, मौलिक और स्तरीय होगी, तो प्राथमिकता दी जाएगी। अगर किसी अप्रत्याशित कारणवश रचनाएं एक सप्ताह तक प्रकाशित ना हो पाए अथवा किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त ना हो पाए तो कृपया पुनः स्मरण दिलवाने का कष्ट करें।

महत्वपूर्णः आखर कलश का प्रकाशन पूणरूप से अवैतनिक किया जाता है। आखर कलश का उद्धेश्य हिन्दी साहित्य की सेवार्थ वरिष्ठ रचनाकारों और उभरते रचनाकारों को एक ही मंच पर उपस्थित कर हिन्दी को और अधिक सशक्त बनाना है। और आखर कलश के इस पुनीत प्रयास में समस्त हिन्दी प्रेमियों, साहित्यकारों का मार्गदर्शन और सहयोग अपेक्षित है।

आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचनाकार की रचना व अन्य सामग्री की कॉपी करना अथवा अपने नाम से कहीं और प्रकाशित करना अवैधानिक है। अगर कोई ऐसा करता है तो उसकी जिम्मेदारी स्वयं की होगी जिसने सामग्री कॉपी की होगी। अगर आखर कलश में प्रकाशित किसी भी रचना को प्रयोग में लाना हो तो उक्त रचनाकार की सहमति आवश्यक है जिसकी रचना आखर कलश पर प्रकाशित की गई है इस संन्दर्भ में एडिटर आखर कलश से संपर्क किया जा सकता है।

अन्य किसी भी प्रकार की जानकारी एवं सुझाव हेत editoraakharkalash@gmail.com पर सम्‍पर्क करें।

Search

Swedish Greys - a WordPress theme from Nordic Themepark. Converted by LiteThemes.com.