सीताराम गुप्ता का आलेख - समय ही नहीं अनुपेक्षणीय है तनावमुक्ति भी


     







     


     
     पुणे-बैंगलुरु हाइवे पर प्रसिद्ध ऐतिहासिक शहर सतारा से आगे एक स्थान है कराड। किसी काम से कराड जाना हुआ। साथ में था मेरा पुत्र डॉ अमित। हम दोनों रविवार शाम को कराड पहुँचे। लगता था दो-तीन दिन रुकना पडेगा लेकिन सोमवार दोपहर एक बजे तक स्थिति स्पष्ट हो गई कि अब यहाँ रुकना बेकार है। वापस दिल्ली लौटने का कार्यक्रम बनाया। कराड से पुणे और पुणे से दिल्ली।
     दोपहर दो बजे कराड से पुणे के लिए बस ली। कराड से पुणे तक लगभग तीन घंटे का सफर है। शाम तक दिल्ली लौटना चाहते थे अतः बस में बैठने के बाद सबसे पहले पता लगाया कि आज शाम को पुणे से दिल्ली के लिए कौन सी फ्लाइट मिल सकती है। पता चला कि पौने सात बजे की फ्लाइट उपलब्ध है। एयरपोर्ट पर भी फ्लाइट से कम से कम एक घंटा पहले पहुँचना अनिवार्य है।
     बस में कंडक्टर से पूछने पर पता चला कि पाँच-सवा पाँच बजे पुणे के स्वारगेट  बस अड्डे पर पहुँच जाएँगे। वहाँ से एयरपोर्ट का भी कम से कम आधे घंटे का सफर है। यदि बस सही समय पर पहुँचा दे और वहाँ से आधे घंटे में एयरपोर्ट भी पहुँच जाएँ तो  फ्लाइट पकडी जा सकती थी लेकिन यदि किसी कारण से बस लेट हो जाती अथवा बस अड्डे से एयरपोर्ट पहुँचने में विलंब हो जाता तो फ्लाइट मिस होना स्वाभाविक था। ऐसे में टिकिट कन्फर्म कराने का सीधा सा अर्थ था फ्लाइट मिस होने पर साढे तेरह हजार रुपये का नुकसान।
     पूरी स्थिति पर ध्यानपूर्वक विचार करने पर एक बात स्पष्ट हो गई कि यदि टिकिट कन्फ्र्म कराते हैं तो चाहे फ्लाइट मिस भी हो लेकिन आगामी चार घंटे गुजरेंगे बेहद तनाव में हर क्षण लगेगा हम लेट हो रहे
हैं भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। कभी ड्राइवर पर क्रोध आएगा तो कभी कंडक्टर पर और कभी सहयात्रियों पर। बस कितनी ही तेज क्यों चले लगेगा बस रेंग रही है। सब हमारे खिलाफ साजिश में शामिल हो गए हैं (वास्तविकता तो ये है कि अन्य कोई हमारे खिलाफ साजिश कर ही नहीं सकता। हम स्वयं अपनी क्षणिक लाभवृत्ति या लोभ के कारण गलत नीतियों का चुनाव कर अपने खिलाफ साजिश रचते हैं) यह भी संभव था कि हम दोनों  आपस में ही उलझ पडें और बिना वजह ही एक दूसरे पर दोषारोपण करने लगें। हमारे सामने कोई जीवन-मरण की स्थिति तो थी नहीं। एक दिन बाद पहुँचने पर भी कोई विशेष लाभ या हानि होने वाली नहीं थी सिवाय एक दिन की छुट्टी लेने के। तो फर क्यों इतना रिस्क लिया जाए? क्यों बेवजह तनाव मोल लिया जाए? यह तनाव ही तो है जिसने हमारी जंदगी को नरक बना रखा है।
     यह हमारी तनावयुक्त जीवनशैली ही तो है जिसके कारण आज हम अनेक व्याधियों के शिकार बने हुए हैं। हर रोज जाने जाने-अनजाने कितने प्रकार के तनावों से हमें गुजरना पडता है। इनका प्रभाव धीरे-धीरे हमें रोगी बनाकर रख देता है और हमें पता भी नहीं चलता। जब पता चलता है तब तक देर हो चुकी होती है। यदि हम जानते-पूछते भी इस स्थिति से बचने का प्रयास नहीं करते तो हमसे बडा मूर्ख नहीं। हम खुद अपने पैरों पर कुल्हाडी मारते हैं। सारी स्थिति पर गौर करने के बाद हमने निर्णय लिया कि आज रात पुणे में ही रुकेंगे और कल दोपहर को जो भी फलाइट आसानी से उपलब्ध होगी उससे वापस लौट जाएँगे। दोबारा फोन करके अगले दिन दोपहर बारह बजे की एक फ्लाइट के टिकट कन्फर्म करा लिए। पैसे भी दो हजार रुपये कम लगे।
     पुणे में बेटे के कई मित्र हैं। उसे भी इस निर्णय से प्रसन्नता ही हुई। पुणे पहुँचकर मैं तो चाय पीकर आराम से लेट गया क्योंकि मुझे पिछले दो दिनों से ज्वर था। बेटा अपने मित्रों से मिलने चला गया। वह खाने के समय पर जब वापस लौटा तो अधिक प्रसन्नचित्त लग रहा था क्योंकि कई मित्रों से मुलाकात कर आया था। यह प्रसन्नता ही तो है जो हमारे अच्छे स्वास्थ्य को अक्षुण्ण बनाए रखने तथा व्याधि की अवस्था में व्याधिमुक्त करने  में सक्षम होती है अतः जीवन में तनाव की अपेक्षा प्रसन्नता प्रदान करने वाले क्षणों को खोजते रहना अनिवार्य है। रात को आराम से खाना खाया और सो गए। तनाव का कहीं नामोनिशान नहीं था। ज्वर के बावजूद नींद ठीक से आई।
     सुबह नींद खुली तो देखा बेटा नदारद था। वह अपने कुछ अन्य शेष मित्रों से मिलने चला गया था। जल्दी ही लौट आया। उसके हाथों में कई थैले भी लटक रहे थे। अपनी बहन के लिए उसकी पसंद के बिस्कुट और शरीफे या कस्टर्ड एप्पल, जिन्हें यहाँ सीताफल कहते हैं, लाना नहीं भूला था। यदि कल रात को ही जाने का प्रोग्राम बन जाता तो मित्रों से मिलने तथा खरीददारी की खुशी कैसे मिलती? जीवन में यदि हम थोडा सहज और संतुलित होकर निर्णय लें तो केवल तनाव से बच सकते हैं अपितु अतिरिक्त आनंद के क्षण भी उत्पन्न कर सकते हैं। तनाव से बचकर विभिन्न व्याधियों से तो बच ही सकते हैं साथ ही प्रसन्नता के कारण मनोभावों में सकारात्मक परिवर्तन के कारण शरीर में रोगावरोधक शक्ति का विकास कर अधिक स्वस्थ और रोगमुक्त भी हो सकते हैं।
     वास्तव में हम स्वयं अवांछित स्थितियों को आमंत्रित कर तनाव और व्याधियाँ मोल लेते हैं। रोगमुक्त स्वस्थ जीवन जीने के लिए जीवन में सहजता अपनाना तथा तनावप्रद स्थितियों से बचने का प्रयास करना अनिवार्य है। माना समय की कीमत है लेकिन स्वास्थ्य से अधिक नहीं। बहुमूल्य समय की बचत के लिए अमूल्य जीवन को दाँव पर नहीं लगाया जाना चाहिए। जीवन अथवा अच्छे स्वास्थ्य के अभाव में बहुमूल्य समय ही क्या कर लेगा? वैसे भी जब तक हम पूर्णरूपेण स्वस्थ नहीं होंगे समय का भी उचित उपयोग नहीं कर पाएँगे।
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सीताराम गुप्ता
.डी.-१०६-सी, पीतमपुरा,
दिल्ली-११००३४
फोन नं. ०११-२७३१३९५४/२७३१३६७९
Email: srgupta54@yahoo.co.in
साभार : " स्पीकिंग ट्री" नवभारत टाइम्स, नई दिल्ली,  
दिनाँक : १२ जनवरी २०१०

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One Response to सीताराम गुप्ता का आलेख - समय ही नहीं अनुपेक्षणीय है तनावमुक्ति भी

  1. एक बार पुनः श्रीमान् मनोज जी, श्री शोभित जी जैन, रश्मि प्रभा जी, देवी नागरानी जी और आप समस्त महान् साहित्यविदों का आखर कलश की तरफ से बहुत-बहुत आभार!!

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