महावीर शर्मा की गजलें













इस ज़िन्दगी से दूर 

इस ज़िन्दगी से दूर, हर लम्हा बदलता जाए है 
जैसे किसी चट्टान से पत्थर फिसलता जाए है।
अपने ग़मों की ओट में यादें छुपा कर रो दिए
घुटता हुआ तन्हा
, कफ़स में दम निकलता जाए है।
कोई नहीं अपना रहा जब, हसरतें घुटती रहीं
इन हसरतों के ही सहारे दिल बहलता जाए है।


तपती हुई सी धूप को हम चांदनी समझे रहे

इस गर्मिये-रफ़तार में दिल भी
पिघलता जाए है।
जब आज वादा-ए-वफ़ा की दासतां कहने लगे
ज्यूं ही कहा
लफ़्ज़े-वफ़ा’, वो क्यूं संभलता जाए है।
दौलत जभी आए किसी के प्यार में दीवार बन
रिश्ता वफ़ा का बेवफ़ाई में बदलता जाए है।

*******


क़ातिल सिसकने क्यूं लगा

सोगवारों में मिरा क़ातिल सिसकने क्यूं लगा
दिल में ख़ंजर घोंप कर, ख़ुद ही सुबकने क्यूं लगा

आइना देकर मुझे, मुंह फेर लेता है तू क्यूं
है ये बदसूरत मिरी, कह दे झिझकने क्यूं लगा

गर ये अहसासे-वफ़ा जागा नहीं दिल में मिरे
नाम लेते ही तिरा, फिर दिल धड़कने क्यूं लगा

दिल ने ही राहे-मुहब्बत को चुना था एक दिन
आज आंखों से निकल कर ग़म टपकने क्यूं लगा

जाते जाते कह गया था, फिर न आएगा कभी
आज फिर उस ही गली में दिल भटकने क्यूं लगा

छोड़ कर तू भी गया अब, मेरी क़िस्मत की तरह
तेरे संगे-आसतां पर सर पटकने क्यूं लगा

ख़ुश्बुओं को रोक कर बादे-सबा ने यूं कहा
उस के जाने पर चमन फिर भी महकने क्यूं लगा।

******* 


बुढ़ापा

जवाँ जब वक़्त की दहलीज़ पर आंसू बहाता है 
बुढ़ापा थाम कर उसको सदा जीना सिखाता है 
पुराने ख़्वाब को फिर से नई इक ज़िंदगी देकर 
बुढ़ापा हर अधूरा पल कहानी में सजाता है. 
तजुर्बा उम्र भर का चेहरे की झुर्रियां बन कर, 
किताबे-ज़िंदगी में इक नया अंदाज़ लाता है। 
किसी के चश्म पुर-नम दामने-शब में अंधेरा हो 
बुझे दिल के अंधेरे में कोई दीपक जलाता है। 
क़दम जब भी किसी के बहक जाते हैं जवानी में 
बुजुर्गों की दुआ से राह पर वो लौट आता है.  
*******
- महावीर शर्मा


7  Hall Street
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London N12 8DB, U.K.
' +44 (0)2084454894
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महावीर’: http://mahavirsharma.blogspot.com
मंथन’: http://mahavir.wordpress.com  

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7 Responses to महावीर शर्मा की गजलें

  1. सुनील जी, आदाब
    इस अंक में श्रद्धेय महावीर जी की ग़ज़लें पढ़ने को मिली.
    सच तो ये है कि उनके कलाम से...
    हम सब पाठकों के साथ साथ...
    ’आखर कलश’ भी धन्य हो गया. ये आपके ब्लाग की सफ़लता है.
    मुबारकबाद कबूल कीजिये.

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  2. वाह बहुत बढ़िया ! इस शानदार और उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!

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  3. तजुर्बा उम्र भर का चेहरे की झुर्रियां बन कर,
    किताबे-ज़िंदगी में इक नया अंदाज़ लाता है।
    आदर्णीय महावीर जी गज़ल के सशक्त हस्ताक्षर हैं. उन्हें पढना ही काफ़ी है.

    ReplyDelete
  4. SHRI MAHAVIR SHARMA HINDI KE SHEERSH SAHITYAKAR
    HAI.SAHITYA KEE HAR VIDHA MEIN UNKEE LEKHNI
    KHOOB CHALTEE HAI.AAPKA SADHUWAD KI AAPNE UNKEE
    UMDA GAZALEN PADHNE KAA SUAVSAR PRADAAN KIYA HAI.

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  5. teeno hi rachnayein lajawaab hain..........sundar prastutikaran.

    ReplyDelete
  6. बेहतरीन अशआर हैं. महावीर सर को तो मैं पढता आया हूँ.

    शुक्रिया आखर कलश के प्रयास का.

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  7. एक कहावत है मज़ाक में कि 'जहँ-जहँ पैर पड़े सन्‍तन के तहँ-तहँ बँटाढार' इसीका एक और रूप है 'जहँ-जहँ पैर पड़े सन्‍तन के तहँ-तहँ हो उद्धार'। आदरणीय महावीर जी की रचनायें आपके ब्‍लॉग पर आना ब्‍लॉग के लिये सम्‍मान की बात है। समझ लीजिये ब्‍लॉग का उद्धार हो गया। अब उस्‍तादों के उस्‍ताद की कही रचनाओं पर समीक्षात्‍मक टिप्‍पणी तो यूँ समझें कि एक औपचारिकता पूरी करने का प्रयास।

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