शिक्षा- जैवप्रौद्योगिकी में परास्नातक, पी एच डी(शोधार्थी)
संस्थान- क्वीन'स विश्वविद्यालय, बेलफास्ट, उत्तरी आयरलैण्ड, संयुक्तगणराज्य
१४ वर्ष की आयु से साहित्य रचना प्रारंभ की, प्रारंभ में सिर्फ लघुकथाओं, व्यंग्य एवं निबंध लिखने का प्रयास किया। कुछ अभिन्न मित्रों सेप्रेरित और प्रोत्साहित होके धीरे-धीरे कविता, ग़ज़ल, एकांकी, कहानियांलिखनी प्रारंभ कीं. अब तक देश व क्षेत्र की कुछ ख्यातिलब्ध पत्रिकाओं औरसमाचारपत्रों में कहानी, कविता, ग़ज़ल, लघुकथा का प्रकाशन, रचनाकार एवंशब्दकार में कुछ ग़ज़ल एवं कविताओं को स्थान मिला. श्रोताओं की तालियाँ, प्रेम एवं आशीर्वचनरूपी सम्मान व पुरस्कार प्राप्त किया.
कृतियाँ- हाल ही में प्रथम काव्य संग्रह'अनुभूतियाँ'काशिवना प्रकाशन सीहोरसे प्रकाशन.
रुचियाँ- साहित्य के अलावा चित्रकारी, अभिनय, पाककला, समीक्षा, निर्देशन, संगीत सुनने में खास रूचि।
आजफिर सुबह-सुबह से शर्मा जी के घर से आता शोर सुनाई दे रहा था. मालूम पड़ाकिसी बात को लेकर उनकी अपने छोटे भाई से फिर कलह हो गयी.. बातों ही बातोंमें बात बहुत बढ़ने लगी और जब हाथापाई की नौबत आ पहुँची तो मुझसे रहा नहींगया. हालांकि बीच बचाव में मैं भी नाक पर एक घूँसा खा गया और चेहरे परउनके झगड़े की निशानी कुछ खरोंचें चस्पा हो गयीं, मगर संतोष इस बात का रहाकि मेरे ज़रा से लहू के चढ़ावे से उनका युद्ध किसी महाभारत में तब्दीलहोने से बच गया. चूंकि मेरे और उनके घर के बीच में सिर्फ एक दीवार काफासला है, लेकिन हमारे रिश्तों में वो फासला भी नहीं. बड़ी आसानी से मैंउनके घर में ज़रा सी भी ऊंची आवाज़ में चलने वाली बातचीत को सुन सकता था.वैसे तो बड़े भाई अमित शर्मा और छोटे अनुराग शर्मा दोनों से ही मेरेदोस्ताना बल्कि कहें तो तीसरे भाई जैसे ही रिश्ते थे लेकिन अल्लाह कीमेहरबानी थी कि उन दोनों के बीच आये दिन होने वाले आपसी झगड़े की तरह इसतीसरे भाई से कोई झगडा ना होता था. जिस वक़्तदोनों भाइयों में झगडा चल रहा था तब अमित जी के दोनोंबेटे, बड़ा ७-८ साल का और छोटा ४-५ साल का, सिसियाने से दाल्हान केबाहरीखम्भों ऐसेटिके खड़े थे जैसे कि खम्भे के साथ उन्हें भी मूर्तियोंमें ढाल दिया गया हो. मगर साथ ही उनकी फटी सी आँखें, खुला मुँह और ज़ोरोंसे धड़कते सीने कीधड़कनोंको देख उनके मूर्ति ना होने का भी अहसास होता था. झगड़ा निपटने के लगभग आधे घंटे बाद जब दोनों कुछ संयत होते दिखे तो उनकीमाँ, सुहासिनी भाभी, दोनों बच्चों के लिए दूध से भरे गिलास लेके आयी..
''चलो तुम लोग जल्दी से दूध पी लो और पढ़ने बैठ जाओ..'' भाभी कीआवाज़ से उनकेउखड़ेहुएमूडकापता चलता था
बड़े ने तो आदेश का पालन करते हुए एक सांस में गिलास खाली कर दियालेकिन छोटा बेटा ना-नुकुर करने लगा..
भाभी ने उसे बहलाने की कोशिश की- ''दूध नहीं पियोगे तो बड़े कैसेहोओगे, बेटा..''
''मुझे नहीं होना बड़ा'' कहते हुए छोटा अचानक फूट-फूट कर रोनेलगा.. ''मुझे छोटा ही रहने दो... भईया मुझे प्यार तो करते हैं, मुझसेझगड़ा तो नहीं करते..''
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ॐ श्री गणेशाय नमः ! या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणा वरदंडमंडितकरा या श्वेतपद्मासना | याब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवै सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाढ्यापहा ||
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मैं नहीं जानता
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जब लोग गा रहे थे
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प्यास भर पानी।
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पानी देखता था
चेहरों का
या फिर
चेहरों के पीछे छुपे
पौरूष का ही
...
मन की उन्मुक्त उड़ान को शब्दों में बाँधने का अदना सा प्रयास भर है मेरा सृजन| हाँ, कुछ रचनाएँ कृत्या,अनुभूति, सृजनगाथा, नवभारत टाईम्स, कुछ मेग्जींस और कुछ समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई हैं. हिन्दी साहित्य, कविता, कहानी, आदि हिन्दी की समस्त विधाएँ पढने शौक है। इसीलिये मैंने आखर कलश शुरू किया जिससे मुझे और अधिक लेखकों को पढने, सीखने और उनसे संवाद कायम करने का सुअवसर मिले। दरअसल हिन्दी साहित्य की सेवा में मेरा ये एक छोटा सा प्रयास है, उम्मीद है आप सभी हिन्दी साहित्य प्रेमी मेरे इस प्रयास में मेरा मार्गदर्शन करेंगे।
masoom se khyaalon ko bahut hi sundar kahani me bandha hai......
ReplyDeletedeepak bhai bahut hi acha insaan hai..
ReplyDeleteउत्तम है, बस कहानी में थोड़ा सा नाटक भी होना चाहिए जैसा कि अंतिम भाग में आया है।
ReplyDeleteachchhi maasoom rachna.
ReplyDeleteअरे वाह मेरे छोटे पर हस्सास भाई
ReplyDeleteकविता से अधिक तो ये कथा भाई
लता 'हया '
बाल मनोविज्ञान से सम्बंधित लघुकथा प्रशंसनीय है I
ReplyDeleteसुधा भार्गव