शमशाद इलाही अंसारी"शम्स" की दो लघुकथाएँ












वृति


शहर में दंगा होते ही अप्रत्याशित रुप से पुलिस-प्रशासन हरकत में आ गया, दोनों पक्षों के दंगाईयों और उनके मुस्टण्डों को पकड़ कर बंद कर दिया गया, शाम होते होते स्थिति नियंत्रण में कर ली गयी, जान माल की कोई विशेष हानि न होने दी गयी. फ़िरे भी जाने क्यों रात होते होते, शहर के दोनों लडाकू समुदायों में अफ़वाहों का बाज़ार था, दोनों ही समुदायों में भारी रोष व्याप्त था
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त्रिकोण
 
उसने एक दिन आज से पूछा कि तू इतना विकृत, विखण्डित, दुखी, रुग्ण, निर्वीय, दयनीय और आशाहीन क्यों हैं? आज ने उत्तर दिया, तुम कल आना मैं कल से पूछकर जवाब दूँगा.
अगले दिन वह फ़िर आज के पास पहुँचा, आज ने कहा कि तुम कल आना क्योंकि कल ने कल से ये प्रश्न पूछा है, उसे जवाब मिलने में समय लगेगा, तुम कल आना, शायद मैं तुम्हे कोई उत्तर दे सकूँ.
उत्तर पाने के लिये वह तब तक चक्कर काटता रहा जब तक वह आज का रहस्य न जान गया.
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12 Responses to शमशाद इलाही अंसारी"शम्स" की दो लघुकथाएँ

  1. कुछ न कहकर भी बहुत कुछ कहती 'वृति' और कल-आज-कल का अनसुलझा 'त्रिकोण'; अच्‍छी लघुकथायें।

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  2. vicharon ka adbhut taana-baana! Badhai! Shams ji

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  3. Jee, hum afvaahon pe jeete aaye hain, jeete rahenge. Afwaahen hamaara apna vichaar jo hotee hain.

    Kal-Aaj-Kal ka trikon bhee badhiya laga.

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  4. आदिमवृत्तियों से बच पाने के लिए मनःचित्त में स्थान बनाती वृत्तियों के निरोध की चिरकाल से विधियाँ सुझाई गयीं हैं.. जिन्हें अपनाना पड़ता है निरंतरता के साथ दीर्घकाल तक. तब कहीं मानव जाति के खोल में जीने वाला प्राणि मनुष्य बनता है. हर जीनेवाला योंभी मुसल्माँ नहीं हो जाता न!
    शम्स भाई, दंगों या समस्त अधमकर्मों की पैदावार में पशुचित्तवत् खेतों में बार-बार उग आती इन आदिम वृत्तियों के बीजों की बड़ी भूमिका है.
    दूसरे, जबर्दस्ती के प्रयास-प्रबंधों की नियति वही हो सकती है जिसका जिक्र आपने किया है.. ’अफ़वाहों का बाज़ार है’ कह कर..
    लघुकथा के चरित्र को प्रतिष्ठित करने के लिए साधुवाद..

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  5. दूसरी लघुकथा त्रिकोण एक बेहतरीन लघुकथा है जो आदमी की हमेशा टालते रहने की तबीयत को शिद्दत से बताती है।

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  6. ".. तू इतना विकृत, विखण्डित, दुखी, रुग्ण, निर्वीय, दयनीय और आशाहीन क्यों"
    आह!.. आपके इस शब्द-चित्र ने हृदय विस्तार में मर्म-वेदना की सूक्ष्म तीव्रता को एकबारगी प्रतिध्वनित कर दिया है. क्या पढ़ूँ इसके आगे, भाई?..

    जो कुछ संचित जितना संचित
    भावानुभूति; अनुभूत प्रारब्ध
    जीवन-आँचल का लहराना
    सिंचित-सिंचित होते शब्द ..

    कल, आज और कल के स्थितप्रज्ञ अस्तित्व का विस्मयकारी संगम ही जीवन है न!!?

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  7. Behatreen laghukathaai hain ... kal aaj aur lab ke beech atki kahaani kamal ki hai ...

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  8. बिलकुल नये शिल्प में यह दोनो लघुकथायें है यह अच्छा लगा , इन्हे पढ़ने मे जितना समय लगा उससे ज़्यादा इन्हे सोचने में लगा ।

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  9. अच्‍छी लघुकथाएं हैं। यथार्थ के चेहरे उघाड़ती हैं ये लघुकथाएं...शिल्‍प में ताजगी है।

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  10. हार्दिक शुभकामनाएं बड़े भाई आपको.... दिल में पड़ी प्यारी सी खुशी हुई इस खबर पर ... आपका छोटा भाई भरत

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