नवनीत पाण्डे की दो कविताएँ

नवनीत पाण्डे राजस्थानी और हिंदी में गद्य और पद्य की दोनों विधाओं में समान गति से लिखते हैं. आपकी 'सच के आस-पास' हिंदी कविता संग्रह और 'माटी जूण' राजस्थानी उपन्यास के अलावा बाल साहित्य की भी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. राजस्थानी कहानी संग्रह व हिंदी कविता संग्रह निकत्क भविष्य में हमारे समक्ष होगा. इन दिनों आप अपने ब्लॉग 'poet of india' में लिखते हैं. वर्तमान में आप भारत संचार निगम लिमिटेड के बीकानेर कार्यालय में अपनी बहुमूल्य सेवाएँ दे रहे हैं. आज उन्ही की कलम से निकली प्रेम को अलग-अलग अर्थों में परिभाषित करती दो रचनाएँ सुधि साहित्य प्रेमियों और पाठकों की नज़र है.....

(१)

प्रेम
जो भी करता है
उसे अपना ही एक अर्थ देता है
किसी के लिए
राधा-श्याम, मीरा-गिरधर,
सोहनी-महिवाल, हीर-रांझा,
ढोला-मरवण है प्रेम
किसी के लिए
किसी को देखना भर प्रेम है
किसी को
किसी का अच्छा लगना
किसी के लिए
किसी की जान प्रेम है
तो किसी के लिए
किसी के साथ सोने की चाह भर है प्रेम
जितने प्रेम
उतने अर्थ
कुछ अनमोल
कुछ व्यर्थ
किसी के लिए ईश्वर
किसी के लिए भक्ति
किसी के लिए आसक्ति
किसी के लिए विरक्ति है प्रेम
मेरे लिए
प्रेम है एक आश्चर्य
शब्द व्यक्त से परे
एक ऐसा आश्चर्य
जो सिर्फ होता है
होता है
कहीं भी
कभी भी
***
(२)

प्रेम
तुम केवल प्रेम क्यूं नहीं हो
क्यूं है तुम्हारे साथ
तुम्हारी चाह
तुम्हारी आह
क्य बेकल है हर कोई
जानने के लिए
तुम्हारी थाह

ओ प्रेम!
आखिर क्या है
तुम्हारा रूप, स्वरूप
तुम!
मौन
वाचाल
भीतर
बाहर
व्यक्त
अव्यक्त
निज
सार्वजनिक
क्या हो तुम?
क्या है तुम्हारी पहचान
कहां है तुम्हारा
उद्भव, अवसान

प्रेम!
कहां कहां हो तुम
और कहां नहीं
सब करते हैं तुम्हारी बडाईयां
न जाने कितने
जीत, हार चुके तुम्हारे दम, बूते
अपनी जीवन लडाईयां
झेल चुके रुस्वाईयां

और आज भी
जारी है अनवरत
न जाने कहां कहां
किस किस रूप में
तुम्हारे लिए कितने संग्राम
कितने कत्ल-ए-आम

प्रेम!
तुम्हें शत् शत् प्रणाम
कितना छोटा
और आसान है
तुम्हारा नाम
पर कितनी दुरूह,
दुर्लभ
दुर्गम है तुम्हारी राह
तुम्हारी चाह!
कितनी अथाह!
जो पाए, बोराए
क्या क्या स्वांग रचाए
रंग में तेरे, रंग रंग जाए

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12 Responses to नवनीत पाण्डे की दो कविताएँ

  1. प्रेम की गूढता को बखूबी अभिव्यक्त किया है ! सच है प्रेम की परिभाषा और उसकी उपादेयता हर एक के लिये अलग होती है और उसे देखने सराहने का दृष्टिकोण भी सबका अलग होता है ! सुन्दर रचनाएं ! आभार !

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  2. प्रेम में डूब कर लिखी गयी रचना .. बहुत गंभीर थापी सहज रचना !

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  3. किसी के लिए ईश्वर
    किसी के लिए भक्ति
    किसी के लिए आसक्ति
    किसी के लिए विरक्ति है प्रेम

    प्रेम को बड़ी सुन्दरता से परिभाषित किया है नवनीत जी ने ....
    प्रेम ईश्वर का ही एक रूप है ....
    दोनों ही रचनायें सराहनीय हैं ...!!

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  4. प्रेम अनंत, प्रेम कथा अनंता।
    प्रेम पर कहने चला तो जाने क्‍या क्‍या कह गया
    प्रेम के भावों की नदिया में सभी कुछ बह गया।

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  5. दोनों ही रचनाएँ बहुत पसंद आईं. आभार.

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  6. Bahut badhiya paribhashit kiya hai ji!

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  7. sach me prem ko ek pyaree abhivyakti ke dwara aapne sanjoya hai, badhai.........

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  8. किसी के लिए ईश्वर
    किसी के लिए भक्ति
    किसी के लिए आसक्ति
    किसी के लिए विरक्ति है प्रेम

    बढिया है ......

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  9. प्रेम के विभिन्न रूप के दर्शन कराती रचनाएं ... सच में प्रेम क्या है पता नहीं ...
    अच्छी लगी दोनों रचनाएं ...

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  10. Donon rachnaon mein Viratta ka aabhaas hua, jo man ke bahut hi kareeb laga. Shabdavali apna parichay aap de rahi hai. Shubhkamnaon ke saath
    Donon

    ReplyDelete
  11. ओ प्रेम!
    आखिर क्या है
    तुम्हारा रूप, स्वरूप
    तुम!
    मौन
    वाचाल
    भीतर
    बाहर
    व्यक्त
    अव्यक्त
    निज
    सार्वजनिक
    क्या हो तुम?
    क्या है तुम्हारी पहचान
    कहां है तुम्हारा
    उद्भव, अवसान...
    behadd sunder kavita.
    badhai sweekar karen .

    ReplyDelete

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