शायमल सुमन की फगुनाहट
१. दिल में है
फागुन आया, तुम न आये, यादों की कहानी दिल में है
जो जख्म मिले थे बिछुड़न के, उसकी भी निशानी दिल में है
इक तड़प मिलन की ले करके जब जब आता ऋतुराज यहाँ
जीने की भी है मजबूरी पर प्यास पुरानी दिल में है
सुख-दुख, मिलन-जुदाई तो आते रहते यह सुना बहुत
सहरा-सा जीवन है फिर भी लोगों की जुबानी दिल में है
जब प्रियतम पास नहीं होते फागुन का रंग लगे फीका
आँगन के खालीपन में भी जीने की रवानी दिल में है
कोयल की मीठी कूक यहाँ, इक हूक जगा देती अक्सर
खुशबू संग सुमन मिले निश्चित वो घड़ी सुहानी दिल में है
२. फगुनाहट
देखो फिर से वसंती हवा आ गयी।
तान कोयल की कानों में यूँ छा गयी।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।
इस कदर डूबी क्यों बाहरी रंग में।
रंग फागुन का गहरा पिया संग मे।
हो छटा फागुनी और घटा जुल्फ की,
है मिलन की तड़प मेरे अंग अंग में।
दामिनी कुछ कर देंगे नादानियाँ।।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।
बन गया हूँ मैं चातक तेरी चाह में।
चुन लूँ काँटे पड़े जो तेरी राह में।
दूर हो तन भले मन तेरे पास है,
मन है व्याकुल मेरा तेरी परवाह में।
भामिनी हम न देंगे कुर्बानियाँ।।
कामिनी मिल खोजेंगे रंगीनियाँ।।
मैं भ्रमर बन सुमन पे मचलता रहा।
तेरी बाँहों में गिर गिर संभलता रहा।
बिना प्रीतम के फागुन का क्या मोल है,
मेरा मन भी प्रतिपल बदलता रहा।
मानिनी हम फिर लिखेंगे कहानियाँ।
३. होलियाए दोहे
होली तो अब सामने खेलेंगे सब रंग।
मँहगाई ऐसी बढ़ी फीका हुआ उमंग।।
पैसा निकले हाथ से ज्यों मुट्ठी से रेत।
रंग दिखे ना आस की सूखे हैं सब खेत।।
एक रंग आतंक का दूजा भ्रष्टाचार।
सभी सुरक्षा संग ले चलती है सरकार।।
मौसम और इन्सान का बदला खूब स्वभाव।
है वसंत पतझड़ भरा आदम हृदय न भाव।।
बना मीडिया आजकल बहुत बड़ा व्यापार।
खबरों के कम रंग हैं विज्ञापन भरमार।।
रंग सुमन का उड़ गया देख देश का हाल।
जनता सब कंगाल है नेता मालामाल।।
४. तस्वीर
अगर तू बूँद स्वाती की, तो मैं इक सीप बन जाऊँ
कहीं बन जाओ तुम बाती, तो मैं इक दीप बन जाऊँ
अंधेरे और नफरत को मिटाता प्रेम का दीपक
बनो तुम प्रेम की पाती, तो मैं इक गीत बन जाऊँ
तेरी आँखों में गर कोई, मेरी तस्वीर बन जाये
मेरी कविता भी जीने की, नयी तदबीर बन जाये
बडी मुश्किल से पाता है कोई दुनियाँ में अपनापन
बना लो तुम अगर अपना, मेरी तकदीर बन जाये
भला बेचैन क्यों होता, जो तेरे पास आता हूँ
कभी डरता हूँ मन ही मन, कभी विश्वास पाता हूँ
नहीं है होंठ के वश में जो भाषा नैन की बोले
नैन बोले जो नैना से, तरन्नुम खास गाता हूँ
कई लोगों को देखा है, जो छुपकर के गजल गाते
बहुत हैं लोग दुनियाँ में, जो गिरकर के संभल जाते
इसी सावन में अपना घर जला है क्या कहूँ यारो
नहीं रोता हूँ फिर भी आँख से, आँसू निकल आते
है प्रेमी का मिलन मुश्किल, भला कैसी रवायत है
मुझे बस याद रख लेना, यही क्या कम इनायत है
भ्रमर को कौन रोकेगा सुमन के पास जाने से
नजर से देख भर लूँ फिर, नहीं कोई शिकायत है
५. प्रेमगीत
मिलन में नैन सजल होते हैं, विरह में जलती आग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
आए पतंगा बिना बुलाए कैसे दीप के पास।
चिंता क्या परिणाम की उसको पिया मिलन की आस।
जिद है मिलकर मिट जाने की यह कैसा अनुराग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
मीठे स्वर का मोल तभी तक संग बजते हों साज।
वीणा की वाणी होती क्या तबले में आवाज।
सुर सजते जब चोट हो तन पे और ह्रदय पर दाग।
प्रियतम! प्रेम है दीपक राग।।
चाँद को देखे रोज चकोरी क्या बुझती है प्यास।
कमल खिले निकले जब सूरज होते अस्त उदास।
हँसे कुमुदिनी चंदा के संग रोये सुमन का बाग़।
६. मिलन
मिलन हुआ था जो कल सपन में, क्या तुमने देखा जो मैंने देखा
तेरे सामने दफन हुआ दिल, क्या तुमने देखा जो मैंने देखा
लटों को मुख से झटक रही हो, हवा के संग जो मटक रही है
हँसी से बिजली छिटक रही है, क्या तुमने देखा जो मैंने देखा
फ़लक को देखा पलक उठा के, तुम्हारी सूरत की वो झलक है
झुकी नजर की छुपी चमक को, क्या तुमने देखा जो मैंने देखा
निहारता हूँ मैं खुद को जब भी, तेरा ही चेहरा उभर के आता
ये आइने की खुली बग़ावत, क्या तुमने देखा जो मैंने देखा
मिलकर सागर में मिट जाना, सारी नदियों की चाहत है
मिलन सुमन का तड़प भ्रमर की, क्या तुमने देखा जो मैंने देखा
***
-श्यामल सुमन
रंगपर्व पर केन्द्रित सभी रचनाएं एक से बढ़ कर एक हैं...
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति..के लिए आपको हार्दिक बधाई।
होली की हार्दिक शुभकामनाएं !
सभी की रचनाएँ बेमिसाल हैं..... होली की हार्दिक शुभकामनाएं ....
ReplyDeleteHoli ke avasar par aapne jo rachnaon ka rang-viranga guldasta banaya hai, bahut manbhavan hai.Sabhee Rachnakaron ko Badhaee. Apko bhee badhai. Aur aap sabhee ko Holi kee hardik shubhkamnayn.
ReplyDeletesabhi sundar rachnayen.
ReplyDeleteहफ़्तों तक खाते रहो, गुझिया ले ले स्वाद.
मगर कभी मत भूलना,नाम भक्त प्रहलाद.
होली की हार्दिक शुभकामनायें.
काफी कुछ बचा रहा इस तरह तुम्हारे -मेरे बीच
ReplyDeleteएक बार फिर चाहूँ
इस बचे को उलटो-पलटो तुम (अपर्णा मनोज)
बिरज में चहुँ दिस उडत गुलाल है
कोरी काहे रही बरसाने की छोरी (कविता किरण)
इन्टरनेट पर कर दी रंगों की बौछार
ई.मेल से भेज दिया पीला लाल गुलाल(संगीता सेठी)
रंग
तीनों गुणों से परे कितना
रंग
मन से मेल नहीं
चरित्र से मेल नहीं
तभी
निखरता है। (सुनील गज्जानी)
इस कदर डूबी क्यों बाहरी रंग में।
रंग फागुन का गहरा पिया संग मे। (शायमल सुमन)
तुझ बिन साजन ना
मन कोई त्यौहार मनावे ,
तू संग हो तो
हर दिन मेरा होली हो जावे ....(प्रवेश सोनी)
बहुत ही सुंदर और रंगपगी अभिव्यक्तियां है